“हामर भाषा, हामर संस्कृति”
जनम, मरन तक, संग लइके चलब,
विदेशी रंगे गरब नी करब,
आपन भाखा, संस्कृति बोले में,
कइसन लाज?
मिली बचावे खातिर,
उठावा आवाज। (1)
माय कर अंचरा तरी मंडा पुजा,
बाप कर पेछउरी तरी सरहुल पुजा,
भाय-बहिन के जोड़े खातिर,
करम लेखे, संसारे नाय दूजा ।
आपन भाखा संस्कृति के पुजे में,
कइसन लाज ?
मिली बचावे खातिर,
उठावा आवाज । ( 2)
जनमइते जेकरा माय से सुनली,
खोरी खेलते जेकरा,संगी से बुझली,
आजा-आजी कर आशिष लेखे ,
हे मोर सोहराइ पुजा,
पुरखा कर देल पुजा करे में,
कइसन लाज?
मिली बचावे खातिर,
उठावा आवाज । (3)
आजी कर अचरा ओढ़ी,
भिते डायर बनावे सिखली,
आजा कर धोती पकरी,
सरहुल कर डायर पुजली,
से धरोहर के माने में,
कइसन लाज ?
मिली बचावे खातिर,
उठावा आवाज । (4)
बचपनेक संगी लेखे,
बोनेक जामुन,पियार हेके,
फेचाकर आंइख लेखे ,
टाटाटोनी बोने भाखे ,
से बोनवा बचावे खातिर,
कइसन लाज ?
मिली बचावे खातिर,
उठावा आवाज। (5)
माय कसम महुआकर फुल,
सबकर भुलावे हियाक सुल,
पिया पिके जाहे भुइल ।
कोंयडी़ (डोरी)कर बात नी पुछा ,
पायके सभे बौंउंडी़ जाहत भुइल ।
से बोउंडी़ मनावे में,
कइसन लाज ?
मिली बचावे खातिर,
उठावा आवाज । (6)
झारखंडेक सान लागे पराश फुल,
मंडाक मान लागे गुलांची फुल,
गुलांची कर गुन सुनी,
संसारे जाहे सुइध भुइल,
से गुन अपनावे में,
कइसन लाज ?
मिली बचावे खातिर,
उठावा आवाज …….(7)
उठावा आवाज…..!!
कवि- गुलांचो कुमारी