मेहनइत के फोर
लोहखरे-भिनसरे उठलियउ मइया,
पढ़इत-लिखइत भेलउ भोर गो।
नोकरी-चाकरी लिये नाञ पारलियउ!
अंखिया से चुवो हउ लोर गो!
अनठेकान किताप हामें पढ़लियउ,
पढ़ाय-लिखाय के नाञ हउ छोर गो।
पढ़ल चीज नाञ अइलउ परीछवें,
टप-टप चुवो हउ लोर गो!
घारा से हामें दूर रहलियउ,
सरधा कइसे पूरा होतउ तोर गो?
पढ़लोक बादें भोथर भे गेलियउ,
आर होय गेलियउ कमज़ोर गो।
की हमर कपारें नाञ लिखल हउ नोकरी?
राती पढ़ियउ चाहें भोर गो।
नोकरी लेल हामें की-की नाञ करलियउ?
भोंडकपार भेलियउ आर बकलोल गो!
समयसिरें साभे कुछ हवे पारइ!
हमर दोस हे आर नाञ तोर गो।
मेहनइत के फोर मीठा हवो हे,
पढ़ते रहबइ सांझ-बिहान-भोर गो।
कवि – पुनीत साव