डोकवा गांव में पानी, सड़क और बिजली का घोर अभाव, ग्रामीण बोले – ‘मईया सम्मान नहीं, सुविधा चाहिए

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डोकवा गांव में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव, पानी के लिए घंटों इंतजार

ग्रामीण बोले – चापाकल एक, भीड़ अनेक… विकास के नाम पर सिर्फ वादे

कुन्दा प्रखंड के बोधाडीह पंचायत के डोकवा गांव की हालत आज भी आधुनिक युग से कोसों दूर है। यहां के हरिजन टोला में करीब 100 घरों की आबादी के लिए सिर्फ एक चापाकल ही जलस्रोत है। ग्रामीणों ने कहा कि पानी के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता है, और जब खेत या मज़दूरी से लौटते हैं, तब भी पानी भरने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है।

पानी, सड़क और बिजली – तीनों नदारद

गांव के लोगों ने बताया कि अब तक पक्की सड़क का निर्माण नहीं हुआ है। बारिश के समय तो हाल और भी बुरा हो जाता है। आपातकालीन स्थिति में गांव तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।

बिजली की स्थिति भी बदतर है – जहां कई घरों में अब तक बिजली का कनेक्शन नहीं मिला है।

ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार पंचायत प्रतिनिधियों और प्रखंड प्रशासन को शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई

मईया सम्मान नहीं, ज़मीन पर सुविधा चाहिए

गांव के बुद्धिजीवियों का कहना है कि

“सरकार ₹2500 का ‘मईया सम्मान’ दे रही है, पर हमें पीने का पानी, पक्की सड़क और बिजली चाहिए। यह सम्मान नहीं, अपमान है।”

मुखिया ने भी माना – समस्या गंभीर है

संबंधित पंचायत की मुखिया अनीता देवी ने बताया कि

“गांव की स्थिति वाकई चिंताजनक है। हमने बार-बार इसकी सूची बनाकर भेजी है लेकिन अब तक समाधान नहीं मिला है। नल जल योजना का कार्य भी अधूरा है।”

प्रशासन से गुहार, कार्रवाई की मांग

ग्रामीणों ने जिला उपायुक्त से मांग की है कि डोकवा गांव में पक्की सड़क, पेयजल और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, ताकि गांव के लोग सम्मान के साथ जीवन जी सकें।

ग्रामीणों की चेतावनी – समस्याएं सुलझें वरना विरोध होगा

हालांकि रिपोर्ट में ग्रामीणों ने संकेत दिया है कि अगर सरकार ने जल्द ध्यान नहीं दिया, तो वे सामूहिक रूप से आंदोलन का रास्ता अपना सकते हैं

मौके पर उपस्थित रहे ये लोग

सुमन रविदास, अजय यादव, द्वारिक यादव, कैलाश महतो, पवन यादव, कृष्णा कुमार, उमेश भारती, सतीश भारती, रेखा देवी, आशा देवी, प्रतिमा देवी, उर्मिला देवी, सविता देवी सहित कई ग्रामीण मौके पर मौजूद थे और उन्होंने एक स्वर में आवाज़ उठाई।

📢 गांव के लोग पूछ रहे हैं — “क्या हमें सम्मान से जीने का अधिकार नहीं?” सरकार और विभाग कब तक चुप रहेंगे?

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