ओझाक (सोखाक) भेउ
हां रे,,, के,, के,, देखले हा –
भूत – डाइन ?
जो,,जो,, हाम्हूं देखबइ,
तनी हांकाइ आन,
कइसन होवे हे डाइन भूतेक जाइत
कइसें उ सब मोरावे हे मानुसेक जाइत ?
हांकाव,,हांकाव,, उखनी के
तनी हाम्हूं देखबइ,,
उखनी सें बतियइबइ,,
गप सप करबइ
हाल चाल पूछबइ !
कि कहलें,,,
उ सब रहो हथ –
सोसाने,, मसाने,, मुरदार घाटें ?
उखनी के बस कइर राखल हथ –
गांवेक ओझा,, गुनिया,,आर सोखा,,,!
अरे,धुत् बोका,,, !
इ सब जते हथुन ओझा,सोखा,,
खाली मानुस के दे हथ – धोखा,,
लोक के बनवो हथ बुड़बक
इ सब बड़का हथ हूंसियार,,
समझाइ कें लोक के कानापतियार,,
अंइंठो हथ – मुरगी,चेंगना,
काड़ा, भेड़ा,पांठा,,,
टाका,,पइसा,,
एहे लागोउ इखनिक खिस्सा !
एहे लागोउ इखनिक धांधा,,,
ढोंग,,ढांग,,आर फाचका -फांदा,,
सेइ ले – दादा! सुना रमेशेक बात
चेतभा तो चेता,,,
नाञ तो पइर जीभे फेराञ,,
बेंचाय जितो बारी -झारी-खेता,,
ढोंग-ढांग,,कानापतियारी,, आर फाचका -फांदा’क
आब सुना तोहनी – पोल
काने कापारें टीका फोंका
तिलक चन्दन गोल गोल
मेढ़ मूरतिक पूजा पाठें,,
काड़ा भेड़ा पांठा काटे,,
मुरगी चेंगनीक रकत चाटे,,
खुब बजवो हथ ढोल,,,!
चाउर धान के सगुन देइख,
टोला टाटीक धरवे नाम,,
भाई भतीजा रिस्तेदारी में,,
झागरा बझवेक करो हथ काम,,
निंगछाछोरीक नामें सबके,,
बनवो हथ भकलोल,,,!
मोरल बादें सभे लोक
पोड़ल बादें होइ जार – खार,,
सोंइंच देखा कि रुपें उ,,
कइसें लेतइ कोन्हों आकार,, ?
जब मोरल मुंड़ी नाञ घांस खाय,,
तो ओझाक बापें कि भूत बनाइत,,?
कवि- रमेश कुमार



