जागा रे झारखण्डी
जागा रे झारखण्डी भाइ- बहीन अबरी जागा,
कते दिन सुतल रहबे आपन हक खातिर भागा ।
लोक बेस बुइझ घरें देल्ही बाहरियाक ठांव ,
घर त बनाइबे करलो आरो बनवलो गांव ।
काका जेठा भाइ दादा कहिके लेलो फुसलाइ,
आर तोहुं हले अइसने सइले देलो तोरा बहराइ ।
ऊ तोर कमजोरी के बेस भाभे देखल हो ,
तोर गोतिया के आपन संगे मेसवल हो ।
तोर आपने बाप काकाक मांझे लड़वल हो,
बहारियाक बात सुइन तोरा भिनवल हो ।
ऊपरेक साहेब बइनके तोरा नचाइ रहल हे ,
बा रे झारखण्डी तोंय ओकरा देख रहल हे ।
हां रे झारखण्डी की तोर मगजे नाइ ढुकल हो ,
तोर अरजल टा खायके सोसन कइर रहल हो ।
उठ जाग झारखण्डी आबरी त नजइर खोल ,
कुछु त सीख आर जान जे बाहरियके हो झोल।
कते सुतबे आर उठवतो के जाग आर जगाव,
ढ़ेइर दिन खाये राज करलथुन आब त भगाव ।
कवि – संजय कुमार महतो ।