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छउवे घरी लेल पीछा
तखने ले परेसान ही
ई कधिया सिरयतय
ओकरे आसे लागल ही ।
कतेक दिन से झोला उठवली
हांथे मुडें आरो बेगे टांगल ही
मगजेक बोझा कधिया हटतय
ओकरे आसे लागल ही ।
कतना गाइर माइर के सहली
रइट रइट के माथा पागल ही
कधिया एकर फल पाइबय
ओकरे आसे लागल ही ।
छउवा ले जुवान तक पाइली
घार छोइड़ परदेस भागल ही
कधिया जे घार घुरबय
ओकरे आसे लागल ही ।
कतेक बोड़ बोड़ परीछा लिखली
छोट परीछाव नाइ पास करल ही
आपन गोड़े कधिया जे ड़ड़ाइबय
ओकरे आसे लागल ही ।
जंदे जांय तंदे एकरे चवय चुगली
छोट बोड़ सभेक एके सुनल ही
सरकारेक वेंकेसीं कधिया से अइतय
ओकरे आसे लागल ही ।
बिहा सादीक अइसने तलतली
उमर बितल जाइ रहल ही
कधिया जे नावा बिहान भेतय
ओकरे आसे लागल ही । ।
कवित्री- सोनी कुमारी