बेटी
बेटी के चांद नाञ बनावा
ताकि कोय घुइर घुइर के देखे
बेटी के सुरूज बनावा
ताकी ओकरा घुरे से पहिले नजइर हेंठ होय जाय
सोभे बेटीक भाइग में बाप हेव हथ
सोभे बापेक भाइग में बेटी नाञ हेव हथ
बेटी कुछो भी मांग हथ
त बिना सोंचले समझले सोब लाइन दे हथ
काहे की एहे बेटीक बिहाक बादे
कुछो देला से कहो हथ
कि बाप एकर किना जउरत हके
हजारो बगीचा अंगना में लगावा
सुन्दर गमक तो बेटी आवेक बादे मिलो हइ
जखन बहु घार आवो हीक
त सोभे कोय पुछो हथ
कि किना लेल आइल हें
मगर कोइ नाइ पुछो हथ
कि किना छोइड़ के आइल हें ।
कवि – भुनेश्वर महतो