माहंगा
दुनियादारीक अइसने चिंता फिकिर ,
एकर खातिर कते खिचीर फिचिर ।
चाइरो बाटे लोक भिखनाइल हथ
केव कम त केव बेसी धराइल हथ ।
हेवइ बोड़ घारेक ढेइर खुसी हांसी
एकर जालाञ गरीब रहथ उपासीं।
गोटे दुनिया हथ तोर से परेसान
कुछु त किरपा करा हे भगवान ।
हियां जखन से तोंय आइल हें
गरीबेक पेटे लाइथ मारल हें ।
हमनी गुजर बसर कइसे करब
छोड़लिये कतेक मेला आर परब ।
गीदर बुतरूक अलगे जाला
खेती बारी मारय अइसने पाला ।
हे ऊपर वाला तनिको करा भला
आर नाइ पारब लाय फुलेक माला ।
कवि- मानिक कुमार



