रे झारखंडी
रे झारखंडी, कते निंदाइल हें
एखनो त नजइर खोल !
हियांक माञ माटी आर भासाक
ऊपर संकट !
ताव तोञ निंदाइल हें !
आंइख खोल !
उठ, जाग, आर एकजुट होव
मांञ, माटिक आर भासाक
संकट दूर कर !!
माथाञ फेटा, हाथे ठेंगा
लइके हुँकाइर भर
आवा हो झारखंडी
सभे गोठाप एक ठीन ।।
हाथे बाँबरा, काँधे धेनुस
जागा रे झारखण्डेक मानुस
नाञ त सताइब थुन सगर खुन
एको तनी राखा नुनेक गुन ।।
रे झारखण्डी !
कोन निंदे निंदाइल हें
एखनु त नजइर खोल !
बजाव नगाडा़ आर ढाँक ढोल
सब झारखण्डी के एक कर ।।
कवि- रितु घांसी



